राष्ट्रपति की वीटो शक्तियाँ
वीटो की शक्ति मूल रूप से विधायिका के किसी भी अधिनियम को अध्यारोपित (ओवरराइड) करने के लिए कार्यपालिका (राष्ट्रपति के माध्यम से) की शक्ति है। वीटो पावर'' का अर्थ है कि राष्ट्रपति के पास ऐसे पॉवर का होना जिसके आधार पर वह किसी भी विधेयक या प्रस्ताव को अस्वीकृत कर, लंबित कर या अटका कर उसको कानून बनने या लागू होने से रोक सकता है. ज्ञातव्य है कि किसी भी विधेयक पर जब तक राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिलती तब तक वह विधेयक, अधिनियम नहीं बन सकता|
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत भारत के राष्ट्रपति को सौंपी गई यह एक विशेष शक्ति है, जिसका प्रयोग कर के वह संसद द्वारा रखे गए किसी भी निर्णय या प्रस्ताव को अस्वीकार कर सकता है. भारत के राष्ट्रपति को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत वीटो पावर या वीटो शक्ति प्राप्त है -
वीटो के प्रकार
पूर्ण वीटो – निर्धारित प्रकिया से पास बिल जब राष्ट्रपति के पास आये (संविधान संशोधन बिल के अतिरिक्त) तो वह् अपनी स्वीकृति या अस्वीकृति की घोषणा कर सकता है किंतु यदि अनु 368 (सविधान संशोधन) के अंतर्गत कोई बिल आये तो वह अपनी अस्वीकृति नहीं दे सकता है। यद्यपि भारत में अब तक राष्ट्रपति ने इस वीटो का प्रयोग बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के नहीं किया है माना जाता है कि वह ऐसा कर भी नहीं सकता (ब्रिटेन में यही पंरपंरा है जिसका अनुसरण भारत में किया गया है)।
निलम्बनकारी वीटो – संविधान संशोधन अथवा धन बिल के अतिरिक्त राष्ट्रपति को भेजा गया कोई भी बिल वह संसद को पुर्नविचार हेतु वापिस भेज सकता है किंतु संसद यदि इस बिल को पुनः पास कर के भेज दे तो उसके पास सिवाय इसके कोई विकल्प नहीं है कि उस बिल को स्वीकृति दे दे। इस वीटो को वह अपने विवेकाधिकार से प्रयोग लेगा। इस वीटो का प्रयोग अभी तक संसद सदस्यों के वेतन बिल भत्ते तथा पेंशन नियम संशोधन 1991 में किया गया था। यह एक वित्तीय बिल था। राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमण ने इस वीटो का प्रयोग इस आधार पर किया कि यह बिल लोकसभा में बिना उनकी अनुमति के लाया गया था।
पॉकेट वीटो – संविधान राष्ट्रपति को स्वीकृति अस्वीकृति देने के लिये कोई समय सीमा नहीं देता है यदि राष्ट्रपति किसी बिल पर कोई निर्णय ना दे (सामान्य बिल, न कि धन या संविधान संशोधन) तो माना जायेगा कि उस ने अपने पॉकेट वीटो का प्रयोग किया है यह भी उसकी विवेकाधिकार शक्ति के अन्दर आता है। पेप्सू बिल 1956 तथा भारतीय डाक बिल 1984 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस वीटो का प्रयोग किया था।
महत्वपूर्ण बिंदु:
धन विधेयक एवं संसद के संविधान संशोधन विधेयक के विरुद्ध राष्ट्रपति के वीटो अधिकार उपलब्ध नहीं हैं।
राष्ट्रपति का पॉकेट वीटो की शक्ति उनकी परिस्थितिजन्य विवेकाधीन शक्ति है एवं संविधान में इसका उल्लेख नहीं किया गया है (यह एक संवैधानिक विवेकाधिकार नहीं है)।
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