राजस्थान का जिला दर्शन :-चूरू जिला
परिचय
राजस्थान के एकीकरण पूर्ण होने के तहत 1 नवंबर 1956 को चूरू को जिले का दर्जा प्राप्त हुआ था।
राजस्थान में सबसे कम वनों वाला जिला चूरू है।
चूरू जिला वर्तमान में राजस्थान के बीकानेर संभाग के अंतर्गत आता है|
चूरू जिले की स्थापना चूड़ा जाट ने 1620 ईस्वी में की थी।
चूरू में थित 6 मंजिली सुराणा हवेली प्रसिद्ध है
राजस्थान का सबसे ठंडा व सबसे गर्म जिला चूरू जिला है।
चुरू जिले का क्षेत्रफल कितना है : 16830 वर्ग किलोमीटर।
चूरू में स्थित मंदिर
वेंकटेश्वर/तिरुपति बालाजी का मन्दिर— इसका निर्माण वेंकटेश्वर फाउण्डेशन ट्रस्ट के सोहनलाल जानोदिया द्वारा 1994 में डॉ. एम. नागराज एवं डॉ. वैकटाचार्य वास्तुविद् की देख-रेख में इटालियन मार्बल, ग्रेनाईट एवं मकराना मार्बल से दस हजार वर्ग फीट क्षेत्र में करवाया। इसका उद्घाटन-21 फरवरी, 1994—भैरों सिंह शेखावत।
अंजना देवी मंदिर (सालासर, चूरू)- हनुमान जी की माता या जननी अंजना देवी का मंदिर भी हनुमान जी के मंदिर के समीप ही चूरू जिले की सालासर नामक जगह पर स्थित है।
शीर्षमेडी, ददरेवा:- मुस्लिमों से युद्ध के दौरान गोगाजी का सिर ददरेवा (चूरू) में गिरा। ददरेवा में गोगाजी की शीर्ष मेड़ी/सिद्ध मेड़ी है। गोगाजी का जन्म स्थल भी ददरेवा ही है।
सालासर बालाजी का मन्दिर—यहाँ चैत्र पूर्णिमा को मेला लगता है। आसोटा गाँव में हल चलाते वक्त एक किसान बाबा मोहनदास को दाढ़ी-मूंछ युक्त हनुमान जी की मूर्ति मिली, जिसने सुजानगढ़ तहसील के सालासर गाँव में इसका मंदिर बनवाया।
उत्तराभिमुख सिंधी मंदिर—सुजानगढ़ में स्थित यह मन्दिर कांच की जड़ाई एवं स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। इस मन्दिर का पूरा नाम सागर सिन्धी मन्दिर है।
चूरू जिले में लगने वाले मेले
• भूभता सिद्ध का मेला : यह मेला चुरू जिले में चंगोई (तारानगर) में भादवा सुदी सप्तमी को भरता है।
• गोगा मेला : यह मेला चूरू जिले के ददरेवा में भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को भरता है।
• सालासर बालाजी का मेला : यह मेला सालासर चूरू में चैत्र एवं कार्तिक पूर्णिमा को भरता है।
पर्यटन स्थल
• चूरू का किला— इस दुर्ग का निर्माण ठा. कुशालसिंह ने करवाया था। चांदी के गोले दागने वाला किला, चुरु किला है।
• ताल छापर वन्य जीव अभयारण्य- ताल छापर वन्य जीव अभयारण्य चूरू जिले की ताल छापर नामक जगह पर स्थित है। ताल छापर वन्य जीव अभयारण्य में सर्दी के मौसम में ठंडे स्थानों से कुरजां पक्षी (डेमोसिल क्रेन), बार हैडेड गूज आदि प्रवासी पक्षी आते है। ताल छापर वन्य जीव अभयारण्य काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध है।
• ददरेवा (चूरू)- पंचपीर गोगाजी का जन्म स्थल चूरू जिले का ददरेवा गांव है। गोगानवमी को गोगाजी के राखी चढ़ाई जाती है। भाद्रपद कृष्ण नवमी या गोगानवमी को ददरेवा में गोगाजी का मेला भरता है।
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