तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई०)

 

तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ई. में 'तराइन' के मैदान में लड़ा गया था। यह युद्ध हिन्दू राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान और भारत पर हमला करने वाले मुस्लिम आक्रमणकारी शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी के मध्य हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद ग़ोरी की करारी हार हुई और उसकी सेना भाग खड़ी हुई। जहां मोहम्मद गोरी एक तुर्की जनजाति घुरिद का नेतृत्व कर रहा था वहीं दूसरी तरफ पृथ्वीराज चौहान राजपूतों का नेतृत्व कर रहे थे। इस युद्ध के परिणाम में राजपूतों की विजय हुई और तुर्की घुरिदों को हार का सामना करना पड़ा था।



युद्ध का परिणाम

 

मुहम्मद गोरी के लिए यह यकीन हो गया कि वह लड़ाई हार चुका है और युद्ध करीब-करीब राजपूतों के पक्ष जा रही है। युद्ध के दबाव को सहने में असमर्थ, मोहम्मद के सैनिकों ने रैंक तोड़ दी और भाग खड़े हुए। बची हुई सेना को चौहान की गजसेना ने कुचल कर खत्म कर दिया। परिणाम स्वरूप पहले तराइन के युद्ध में मुहम्मद गोरी की हार हुई और भारत के राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान ने विजय की पताका लहराई।

 

तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई०)

 

तराइन की दूसरी लड़ाई 1192 में घुरिद बलों द्वारा राजपूत संघ के खिलाफ तराइन (हरियाणा, भारत में आधुनिक तराओरी) के पास लड़ी गई थी। लड़ाई के परिणामस्वरूप आक्रमण करने वाली घुरिद सेनाओं की जीत हुई।

 

तराइन की दूसरी लड़ाई मुहम्मद गोरी और राजपूत चाहमानों और उनके सहयोगियों के नेतृत्व में 1192 में पृथ्वी राज चौहान के नेतृत्व में घुरिद सेना के बीच लड़ी गई थी। इस लड़ाई में राजपूतों की हार देखी गई, जिससे उत्तर भारत को भविष्य के आक्रमणों और तुर्किक जनजातियों के वर्चस्व के लिए खोल दिया गया। .